श्री सत्यनारायण जी आरती – जय लक्ष्मी रमणा, श्री लक्ष्मी रमणा – Satyanarayan Bhagwan Ki Aarti
शास्त्रो में कहा गया है कि सत्यनारायण भगवान की कथा कराने से हज़ारों साल तक किये गए यज्ञ के बराबर फल मिलता है साथ ही सत्यनारायण भगवान की कथा सुनने को भी सौभाग्य की बात माना गया है। कथा के बाद आरती करके प्रसाद वितरण करें।
सत्यनारायण भगवान की आरती
जय लक्ष्मी रमणा, श्री लक्ष्मी रमणा।
सत्यनारायण स्वामी जन-पातक-हरणा।। जय..
रत्नजटित सिंहासन अद्भुत छबि राजै।
नारद करत निराजन घंटा ध्वनि बाजै।। जय..
प्रकट भये कलि कारण, द्विज को दरस दियो।
बूढ़े ब्राह्मण बनकर कंचन-महल कियो।। जय.।।
दुर्बल भील कठारो, जिनपर कृपा करी।
चन्द्रचूड़ एक राजा, जिनकी बिपति हरी।। जय..
वैश्य मनोरथ पायो, श्रद्धा तज दीन्हीं।
सो फल भोग्यो प्रभुजी फिर अस्तुति कीन्हीं।। जय..
भाव-भक्ति के कारण छिन-छिन रूप धरयो।
श्रद्धा धारण कीनी, तिनको काज सरयो।। जय..
ग्वाल-बाल संग राजा वन में भक्ति करी।
मनवांछित फल दीन्हों दीनदयालु हरी।। जय..
चढ़त प्रसाद सवायो कदलीफल, मेवा।
धूप-दीप-तुलसी से राजी सत्यदेवा।। जय..
श्री सत्यनारायण जी की आरती जो कोई नर गावै।
तन-मन-सुख-संपत्ति मन-वांछित फल पावै।। जय..
सत्यनारायण भगवान का परिचय
सत्यनारायण भगवान, वैष्णव परंपरा में भगवान विष्णु का सत्य स्वरूप है सत्यनारायण भगवान , भगवान विष्णु की कई अलग अलग छवियां है, इनमे एक सबसे प्रसिद्ध है, जिसमे वह क्षीरसागर में शेषनाग की शैय्या पर आराम की मुद्रा में है। देवी लक्ष्मी उनके चरणों के पास बैठी हुई है। उनकी नाभी से कमल निकल रहा है और ब्रह्मा जी उस कमल पर विराजमान है। यह चित्र संसार के निर्माण का चित्रण माना जाता है
इसके बाद भगवान विष्णु का एक और स्वरूप सामने आता है। इसमें वह कमल पुष्प पर खड़े है।उनके चार हाथ है, दो हाथ कंधे से ऊपर उठे हुए है, जिसमे बाएं हाथ मे शंख है, दाहिने हाथ मे चक्र, नीचे के दाहिने हाथ मे गदा है और बाएं हाथ मे कमल, यही कमल वाला हाथ आशीर्वाद की मुद्रा में भी है ,भगवान विष्णु के इस स्वरूप को चतुर्भुज स्वरूप और इसी रूप के सम्पूर्ण सत्य होने के कारण ही सत्यनारायण कहते हैं।
सत्यनारायण भगवान की महिमा
श्री सत्यनारायण भगवान की कथा और व्रत से हमे यह शिक्षा मिलती है कि सत्यस्वरूप ब्रह्मा जीवात्मा रूप में हमारे अंदर विद्यमान है, हम सब सत्य के ही स्वरूप है, पर माया के वश में आकर नष्ट होने वाली वस्तुओं को संग्रह करने की सोचकर संसार मे मग्न हो रहे है। इस अज्ञान को दूर करके सत्य को स्वीकार करना और प्रभु की भक्ति करना ही मानव का धर्म है। यही सत्यनारायण व्रत और कथा का सार है
सत्यनारायण भगवान की जय