Tulsi ji Ki Aarti in Hindi Lyrics – तुलसी जी की आरती – जय तुलसी माता, मैय्या जय तुलसी माताI
Tulsi plant is a Goddess in Hindu culture. The Tulsi plant also has great medicinal benefits. Tulsi plant is also used in Ayurvedic treatment and is a cure for many diseases and purifies the atmosphere.
तुलसी जी की पौधा घर मे रखने से दरिद्रता दूर होती है, रोज छूकर ये मंत्र बोलने से पूरी होती है सभी मनोकामनाएं। तुलसी जी के पौधे को लक्ष्मी जी का प्रतीक माना गया है। हिन्दु धर्म में तुलसी के पौधे को पूजनीय माना जाता है।
मंत्र
महाप्रसाद जननी सर्व सोभाग्यवर्धिनी, आधि व्याधि हरा नित्यं तुलसी त्वं नमोस्तुते ….
इस मंत्र का जाप नियमित रूप से तुलसी पुत्र को या पौधे को छूते हुए करना चाहिए. इससे व्यक्ति की सभी इच्छाएं पूर्ण हो जाती है।
तुलसी माता की आरती
जय जय तुलसी माता,
मैया जय तुलसी माता ।
सब जग की सुख दाता,
सबकी वर माता ॥
॥ जय तुलसी माता…॥
सब रोगों से ऊपर ।
रज से रक्ष करके,
सबकी भव त्राता ॥
॥ जय तुलसी माता…॥
बटु पुत्री है श्यामा,
सूर बल्ली है ग्राम्या ।
विष्णुप्रिय जो नर तुमको सेवे,
सो नर तर जाता ॥
॥ जय तुलसी माता…॥
हरि के शीश विराजत,
त्रिभुवन से हो वंदित ।
पतित जनों की तारिणी,
तुम हो विख्याता ॥
॥ जय तुलसी माता…॥
लेकर जन्म विजन में,
आई दिव्य भवन में ।
मानव लोक तुम्हीं से,
सुख-संपति पाता ॥
॥ जय तुलसी माता…॥
हरि को तुम अति प्यारी,
श्याम वर्ण सुकुमारी ।
प्रेम अजब है उनका,
तुमसे कैसा नाता ॥
हमारी विपद हरो तुम,
कृपा करो माता ॥
॥ जय तुलसी माता…॥
जय जय तुलसी माता,
मैया जय तुलसी माता ।
सब जग की सुख दाता,
सबकी वर माता ॥
तुलसी जी का परिचय
हम सब अपने अपने घरों में तुलसा जी का पोधा ज़रूर लगाते है ,देव-उठनी एकदशी पर तुलसी विवाह क्यों होता है ये बहुत कम लोगो को पता है? आईये जानते है!
तुलसी (पौधा) पूर्व जन्म में एक लड़की थी, जिसका नाम वृंदा था। राक्षस कुल में जन्मी यह बच्ची बचपन से ही भगवान विष्णु की भक्त थीं। जब वह बड़ी हुई तो उनका विवाह राक्षस कुल में ही दानव राज जलंधर से संपन्न हुआ।वृंदा बड़ी ही पतिव्रता स्त्री थी, सदा अपने पति की सेवा किया करती थी। एक बार देवताओं और दानवों में युद्ध हुआ जब जलंधर युद्ध मे जाने लगे तो वृंदा ने कहा.. स्वामी आप युद्ध पर जा रहे है, आप जब तक युद्ध मे रहेंगे , में पूजा में बैठकर आपकी जीत के लिए अनुष्ठान करूँगी। जब तक आप नही लौटते में अपना संकल्प नही छोडूंगी। लेकिन जलंधर तो युद्ध मे चला गया और वृंदा व्रत का संकल्प लेकर पूजा में बैठ गई। उसके व्रत के प्रभाव से देवता भी जलंधर को न हर सके। सारे देवता जब हारने लगे तो विष्णु जी के पास पहुचे और सभी ने भगवान से प्रार्थना की। तब भगवान बोले, वृंदा मेरी परम भक्त है, में उससे छल नही कर सकता। इस पर देवता बोले कि भगवान दूसरा कोई उपाय हो तो बताएं लेकिन हमारी मदद अवश्य करे। इस पर भगवान विष्णु ने जलंधर का रूप धरा और वृंदा के महल पहुंच गए।
वृंदा ने जैसे ही अपने पति को देखा तो तुरंत पूजा में से उठ गई और उनके चरणों को छू लिया। ईश्वर, वृंदा का संकल्प टूटा, उधर युद्ध मे देवताओं ने जलंधर को मार दिया और उसका सिर काट कर अलग कर दिया। जलंधर का कटा हुआ सिर जब महल में गिरा तो वृंदा ने आश्चर्य से भगवान की और देखा जिन्होंने जलंधर का रूप धर रखा था। इस पर भगवान विष्णु अपने रूप में आ गए और कुछ बोल ना सके। वृंदा ने कुपित होकर भगवान को श्राप दे दिया कि वे पत्थर के हो जाएं। इसके चलते भगवान तुरंत पत्थर के हो गए, सभी देवताओं में हाहाकार मच गया। देवताओं की प्रार्थना के बाद वृंदा ने अपना श्राप वापस ले लिया।
इसके बाद वे अपने पति का सिर लेकर सती हो गई। उनकी राख से एक पौधा निकला तब भगवान विष्णु जी ने उस पौधे का नाम तुलसी रखा और कहा कि में इस पत्थर रूप में भी रहूंगा, जिसे शालिग्राम के नाम से तुल्सी जी के साथ ही पूजा जाएगा।
इतना ही नही उन्होने कहा कि किसी भी शुभ कार्य मे बिना तुलसी जी के भोग के पहले कुछ भी स्वीकार नही करूँगा। तभी से ही तुलसी जी की पूजा होने लगी । कार्तिक मास में तुलसी जी का विवाह शालिग्राम जी के साथ किया जाता है। साथ ही देव -उठावनी एकादशी के दिन इसे तुलसी विवाह के रूप में मनाया जाता है।