Narada Kruta Ganapati Stotra – श्री गणपति स्तोत्रम् (नारद कृतम्) – भो गणेश सुरश्रेष्ठ लम्बोदर परात्पर।

नारद कृत गणपति स्तोत्र भगवान गणेश की महिमा का गान और प्रशंसा करने के लिए नारद ऋषि द्वारा रचा गया है। यह स्तोत्र भक्तों को भगवान गणपति की कृपा और आशीर्वाद को प्राप्त करने में सहायक होता है। इसमें गणेश जी के गुणों की महिमा और उनके महत्त्व का वर्णन किया गया है।

|| श्री गणपति स्तोत्रम् (नारद कृतम्) ||

भो गणेश सुरश्रेष्ठ लम्बोदर परात्पर ।
हेरम्ब मङ्गलारम्भ गजवक्त्र त्रिलोचन ॥ १ ॥

मुक्तिद शुभद श्रीद श्रीधरस्मरणे रत ।
परमानन्द परम पार्वतीनन्दन स्वयम् ॥ २ ॥

सर्वत्र पूज्य सर्वेश जगत्पूज्य महामते ।
जगद्गुरो जगन्नाथ जगदीश नमोऽस्तु ते ॥ ३ ॥

यत्पूजा सर्वपुरतो यः स्तुतः सर्वयोगिभिः ।
यः पूजितः सुरेन्द्रैश्च मुनीन्द्रैस्तं नमाम्यहम् ॥ ४ ॥

परमाराधनेनैव कृष्णस्य परमात्मनः ।
पुण्यकेन व्रतेनैव यं प्राप पार्वती सती ॥ ५ ॥

तं नमामि सुरश्रेष्ठं सर्वश्रेष्ठं गरीष्ठक ।
ज्ञानिश्रेष्ठं वरिष्ठं च तं नमामि गणेश्वरम् ॥ ६ ॥

इत्येवमुक्त्वा देवर्षिस्तत्रैवान्तर्दधे विभुः ।
नारदः प्रययौ शीघ्रमीश्वराभ्यन्तरं मुदा ॥ ७ ॥

इदं लम्बोदरस्तोत्रं नारदेन कृतं पुरा ।
पूजाकाले पठेन्नित्यं जयं तस्य पदे पदे ॥ ८ ॥

सङ्कल्पितं पठेद्यो हि वर्षमेकं सुसम्यतः ।
विशिष्टपुत्रं लभते परं कृष्णपरायणम् ॥ ९ ॥

यशस्विनं च विद्वांसं धनिनं चिरजीविनम् ।
विघ्ननाशो भवेत्तस्य महैश्वर्यं यशोऽमलम् ।
इहैव च सुखं भक्त्या अन्ते याति हरेः पदम् ॥ १० ॥

इति श्रीनारदपञ्चरात्रे ज्ञानामृतसारे प्रथमैकरात्रे गणपतिस्तोत्रं नाम सप्तमोऽध्यायः ।

इस स्तोत्र का पाठ करने से भक्त को बुद्धि, बल, समृद्धि, और आनंद मिलता है, और उनके जीवन में सुख और शांति सदैव बनी रहती है।

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