आरती बाल कृष्ण की कीजै – Shri Bal Krishna ki Aarti
आरती बालकृष्ण की कीजै
आरती बाल कृष्ण की कीजै,
अपनो जन्म सफल कर लीजै,
श्री यशोदा को परम दुलारो,
बाबा की अखियन को तारों,
गोपिन के प्राणन सों प्यारो,
इन पर प्राण न्योछावर कीजै,
आरती बालकृष्ण की कीजै।।
बलदाऊ को छोटो भैया,
कलुआ कलुआ बोले या की मैया,
प्रेम मुदित मन लेत बलैयां,
यह छवि नैनन में भर लीजै,
आरती बालकृष्ण की कीजै।।
तोतली बोली मधुर सुहावे,
सखा संग खेलत सुख पावे,
सोई सूक्ति जो इनको ध्यावे,
अब इनको अपना कर लीजै,
आरती बालकृष्ण की कीजै।।
श्री राधा वर सुघड़ कन्हैया,
ब्रज जन को नवनीत खिवैया,
देखते ही मन लेत चुरैया,
अपना सर्वस्व इनको दीजे,
आरती बालकृष्ण की कीजै।।
श्रीकृष्ण अवतार
बचपन
देवकी एवं वसुदेव श्रीकृष्ण के माता-पिता थे । श्रीविष्णु की आज्ञानुसार योगमाया ने देवकी के सातवें गर्भ को वसुदेव की दूसरी पत्नी रोहिणी के गर्भ में प्रविष्ट किया और वह स्वयं देवकी के गर्भ में रही । जन्मोपरांत कंस जब उसे मारने निकला, तो उसके हाथों से छूटकर योगमाया स्वस्थान चली गई । श्रीकृष्ण देवकी की आठवीं संतान थे । श्रीकृष्ण के जन्मोपरांत वसुदेव उन्हें गोकुल में नंद-यशोदा के घर ले गए । वसुदेव ने रोहिणी को भी उसके पुत्र के साथ गोकुल भेज दिया । यदु वंश के पुरोहित गर्ग मुनि ने वसुदेव के कहने पर दोनों बालकों का गुप्तरूप से नामकरण किया । उन्होंने रोहिणी के पुत्र का नाम राम एवं देवकी के पुत्रका नाम श्रीकृष्ण रखा । आगे चलकर रामकी प्रचंड शक्ति के कारण उनका नाम बलराम पडा ।
आयुके सातवें वर्ष में श्रीकृष्ण कंस का वध करने मथुरा गए, तभी उनका बचपन समाप्त हो गया था । मथुरा के आसपास के भूभाग को ब्रजभूमि कहते हैं । बालकृष्ण की लीला इसी प्रदेश में हुई, इसलिए इसे पुण्यभूमि मानते हैं ।
बुद्धिमान
कंसवध एवं उपनयन के पश्चात बलराम एवं श्रीकृष्ण अवंतीनगरी में गुरु सांदीपनि के आश्रम गए । संदीपनः अर्थात वह जिनके शरीर की सर्व कोशिकाओं में दीप अर्थात चैतन्य जागृत है । श्रीकृष्ण ने उनसे चौंसठ दिनों में चौदह विद्याएं एवं चौंसठ कलाएं सीखीं । साधारणतः एक विद्या सीखने में दो से ढाई वर्ष लगते थे ।
पारिवारिक
आदर्श पुत्र
श्रीकृष्ण अपने आचरणद्वारा माता-पिता वसुदेव-देवकी एवं पालनकर्ता नंद-यशोदाको आनंदित रखने का प्रयत्न करते थे ।
आदर्श बंधु
श्रीकृष्ण अपने बडे भाई बलराम का मान रखते थे ।
आदर्श मित्र
स्वयं द्वारकाधीश होकर भी श्रीकृष्ण ने अपने बचपन के निर्धन मित्र सुदामा का बडे प्रेम से स्वागत किया । पांडवों का सखा होने के नाते श्रीकृष्ण ने सदैव उनकी सहायता की । श्रीकृष्ण के प्रति पांडवों की सख्यभक्ति थी ।
कलासंबंधी
नृत्य, संगीत इत्यादि कलाओं के श्रीकृष्ण भोक्ता एवं मर्मज्ञ थे । उनके बांसुरीवादन एवं रासक्रीडा प्रसिद्ध हैं । श्रीकृष्णकी बांसुरी सुनकर पशुपक्षी भी मोहित हो जाते थे।
शारीरिक
श्रीकृष्ण का सौंदर्य अद्वितीय था । उनके सौंदर्य से सभी मोहित हो जाते थे ।