श्री हनुमान जन्मोत्सव दर्शन, पूजन विधि, मंत्र – Shri Hanuman Janmotsav 2022
हनुमान जी का जन्म चैत्र पूर्णिमा को मंगलवार के दिन चित्रा नक्षत्र व मेष लग्न के योग में भारत देश में आज के झारखण्ड राज्य के गुमला जिले के आंजन नाम के छोटे से पहाड़ी गाँव के एक गुफा में हुआ था।
इन्हें बजरंगबली के रूप में जाना जाता है क्योंकि इनका शरीर एक व्रज की तरह है। वे पवन-पुत्र के रूप में जाने जाते हैं। वायु अथवा पवन (हवा के देवता) ने हनुमान को पालने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
महावीर हनुमान को भगवान शिव का 11वां रूद्र अवतार कहा जाता है और वे प्रभु श्री राम के अनन्य भक्त हैं। हनुमान जी ने वानर जाति में जन्म लिया। उनकी माता का नाम अंजना (अंजनी) और उनके पिता वानरराज केशरी हैं। इसी कारण इन्हें आंजनाय और केसरीनंदन आदि नामों से पुकारा जाता है।
हनुमान जन्मोत्सव के अति पावन पर्व पर हनुमानजी की आरती करें
हनुमान जी के जन्म की कथा
हनुमान जी के जन्म के पीछे पवन देव का भी योगदान था। एक बार अयोध्या के राजा दशरथ अपनी पत्नियों के साथ पुत्रेष्टि हवन कर रहे थे। यह हवन पुत्र प्राप्ति के लिए किया जा रहा था। हवन समाप्ति के बाद गुरुदेव ने प्रसाद की खीर तीनों रानियों में थोड़ी थोड़ी बांट दी।
खीर का एक भाग एक कौआ अपने साथ एक जगह ले गया जहा अंजनी मां तपस्या कर रही थी। यह सब भगवान शिव और वायु देव के इच्छा अनुसार हो रहा था। तपस्या करती अंजना के हाथ में जब खीर आई तो उन्होंने उसे शिवजी का प्रसाद समझ कर ग्रहण कर लिया। इसी प्रसाद की वजह से हनुमान का जन्म हुआ।
हनुमान जी को कलियुग में सबसे प्रमुख ‘देवता’ माना जाता है। रामायण के सुन्दर कांड और तुलसीदास जी की हनुमान चालीसा में बजरंगबली के चरित्र पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है। इसके अनुसार हनुमान जी का किरदार हर रूप में लोगों के लिए प्रेरणादायक है। हनुमान जी के बारे में तुलसीदास लिखते हैं, ‘संकट कटे मिटे सब पीरा,जो सुमिरै हनुमत बल बीरा’। यानी हनुमान जी में हर तरह के कष्ट को दूर करने की क्षमता है। हनुमान जी हमे कुछ ऐसे गुण सिखाते है जिन्हें अपनाकर हम अपने सभी कष्ट दूर कर सकते हैं।
हनुमान जी के अनंत गुण एवं कौशल
आईये जानते है हनुमान जी के कोन से ऐसे गुण है जो हमें सीखना चाहिए
संवाद कौशल
रावण की अशोक वाटिका में माता सीता और हनुमान जी मिले ,माता सीता उन्हें पहचानती नही थी। पर वह एक वानर से श्रीराम का समाचार सुन वह आशंकित भी हुईं, परन्तु हनुमान जी ने अपने ‘संवाद कौशल’ से उन्हें यह भरोसा दिला ही दिया की वह राम के ही दूत हैं। सुंदरकांड में इस प्रसंग को इस तरह व्यक्त किया गया हैः
‘कपि के वचन सप्रेम सुनि, उपजा मन बिस्वास।
जाना मन क्रम बचन यह ,कृपासिंधु कर दास।।
चतुराई
हनुमान जी ने समुद्र पार करते समय सुरसा से लड़ने में समय नहीं गंवाया। सुरसा हनुमान जी को खाना चाहती थी। उस समय हनुमान जी ने अपनी चतुराई से पहले अपने शरीर का आकार बढ़ाया और अचानक छोटा रूप कर लिया। छोटा रूप करने के बाद हनुमान जी सुरसा के मुंह में प्रवेश करके वापस बाहर आ गए। हनुमान जी की इस चतुराई से सुरसा प्रसन्न हो गई और रास्ता छोड़ दिया। चतुराई की यह कला हम हनुमान जी से सीख सकते हैं।
आदर्शों से कोई समझौता नहीं
लंका में रावण के उपवन में हनुमान जी और मेघनाथ के मध्य हुए युद्ध में मेघनाथ ने ‘ब्रह्मास्त्र’ का प्रयोग किया। हनुमान जी चाहते, तो वह इसका तोड़ निकाल सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया, क्योंकि वह ब्रह्मास्त्र का महत्व कम नहीं करना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने ब्रह्मास्त्र का तीव्र आघात सह लिया। हालांकि, यह प्राणघातक भी हो सकता था। तुलसीदास जी ने इस पर हनुमानजी की मानसिकता का सूक्ष्म चित्रण किया हैः
‘ब्रह्मा अस्त्र तेंहि साधा, कपि मन कीन्ह विचार।
जौ न ब्रहासर मानऊं, महिमा मिटाई अपार।।
बहुमुखी भूमिका में हनुमान
हम अक्सर अपनी शक्ति और ज्ञान का प्रदर्शन करते रहते हैं, कई बार तो वहां भी जहां उसकी आवश्यकता भी नहीं होती। हनुमान चालीसा में लिखा है,
‘सूक्ष्म रूप धरी सियंहि दिखावा,
विकट रूप धरी लंक जरावा।’
माता सीता के सामने उन्होंने खुद को लघु रूप में रखा, क्योंकि यहां वह पुत्र की भूमिका में थे, परन्तु संहारक के रूप में वह राक्षसों के लिए काल बन गए। एक ही स्थान पर अपनी शक्ति का दो अलग-अलग तरीके से प्रयोग करना हनुमान जी से सीखा जा सकता है।
समस्या नहीं समाधान स्वरूप
जिस समय लक्ष्मण रण भूमि में मूर्छित हो गए, उनके प्राणों की रक्षा के लिए हनुमान जी पूरा पहाड़ उठा लाए, क्योंकि वह संजीवनी बूटी नहीं पहचानते थे। हनुमान जी यहां हमें सिखाते हैं कि मनुष्य को शंका स्वरूप नहीं, वरन समाधान स्वरूप होना चाहिए।
आत्ममुग्धता से कोसों दूर
सीता जी का समाचार लेकर सकुशल वापस पहुंचे श्री हनुमान जी की हर तरफ प्रशंसा हुई, लेकिन उन्होंने अपने पराक्रम का कोई किस्सा प्रभु राम को नहीं सुनाया। यह हनुमान जी का बड़प्पन था,जिसमे वह अपने बल का सारा श्रेय प्रभु राम के आशीर्वाद को दे रहे थे। प्रभु श्रीराम के लंका यात्रा वृत्तांत पूछने पर हनुमान जी ने जो कहा उससे भगवान राम भी हनुमान जी के आत्ममुग्धताविहीन व्यक्तित्व के कायल हो गए।
नेतृत्व क्षमता
समुद्र में पुल बनाते वक़्त अपेक्षित कमजोर और उच्चश्रृंखल वानर सेना से भी कार्य निकलवाना उनकी विशिष्ठ संगठनात्मक योग्यता का परिचायक है। राम-रावण युद्ध के समय उन्होंने पूरी वानरसेना का नेतृत्व संचालन प्रखरता से किया।
श्री हनुमान जी की उपासना
हनुमान जन्मोत्सव के दिन श्री हनुमान जी की उपासना व्यक्ति को हर प्रकार के भय से मुक्ति दिलाकर सुरक्षा प्रदान करती है। साथ ही हर प्रकार के सुख-साधनों से फलीभूत करती है।
पूजा सामग्री
हनुमान जन्मोत्सव के दिन हनुमान जी की पूजा विधि-विधान से करना शुभ होता है। इसलिए पूजा करने से पहले ये सामग्री ले लें। एक चौकी, एक लाल कपड़ा, हनुमान जी की मूर्ति या फोटो, एक कप अक्षत, घी से भरा दीपक, फूल, चंदन या रोली, गंगाजल, तुलसी की पत्तियां, धूप, नैवेद्य (गुड और भुने चने)
हनुमान जन्मोत्सव की पूजा विधि
- ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सभी कामों से निवृत्त होकर स्नान करें।
- इसके बाद हनुमान जी को ध्यान कर हाथ में गंगाजल लेकर व्रत का संकल्प लें।
- उसके बाद पूर्व दिशा की ओर भगवान हनुमान जी की प्रतिमा को स्थापित करें।
- फिर सच्चे मन से हनुमान जी की प्रार्थना करें।
- उसके बाद एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछा दें और इसपर हनुमान जी की फोटो रखें।
- उसके बाद सबसे पहले एक पुष्प के द्वारा जल अर्पित करें।
- अब फूल अर्पित करें और फिर रोली या चंदन लगाएं।
- इसके साथ ही अक्षत चढ़ाएं।
- भोग चढ़ाएं और जल अर्पित करें।
- इसके बाद दीपक और धूप जला कर आरती करें और हनुमान जी के मंत्रों का जाप, सुंदरकांड और चालीसा का पाठ पढ़े।
हनुमान जी के प्रभावी मंत्र
1. ॐ नमो भगवते हनुमते नम:
अगर आपके परिवार में सुख एवं शांति नहीं है, अगर परिजनों में बेवजह वाद विवाद होता रहता है, ऐसे में आपको इस मंत्र का जाप करना चाहिए. इस मंत्र के प्रभाव से लोगों के जीवन में सुख एवं शांति आ सकती है.
2. मनोजवं मारुततुल्यवेगं, जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठ। वातात्मजं वानरयूथमुख्यं, श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये॥
इस मंत्र का जाप करने से हनुमान जी प्रसन्न होते हैं, वे अपने भक्तों को सुख एवं समृद्धि प्रदान करते हैं. उनकी मनोकामनाओं की पूर्ति करते हैं और दुखों को दूर करते हैं.
3.अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि॥
हनुमान जी के इस मंत्र का जाप कार्यों में सफलता एवं संकटों से सुरक्षा प्रदान करता है.
हनुमान चालीसा की हर चौपाई ही मंत्र है। इनका जप कर अपनी समस्या का निवारण किया जा सकता है। रुद्राक्ष की माला पर हर मंत्र श्रद्धानुसार जपें।
(1) बल-ज्ञान-बुद्धि पाने के लिए-
‘महाबीर बिक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी।।’
(2) बल-बुद्धि-ज्ञान तथा विद्या प्राप्त करने हेतु-
‘ बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।
बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।।’
(3) स्वास्थ्य लाभ, रोग तथा दर्द दूर करने के लिए-
‘ नासै रोग हरै सब पीरा।
जपत निरंतर हनुमत बीरा।।’
(4) संकटों से मुक्ति के लिए-
‘ संकट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमंत बलबीरा।।’
(5) भूत-प्रेत-भय से मुक्ति के लिए-
‘ भूत पिशाच निकट नहिं आवै।
महाबीर जब नाम सुनावै।।’
(6) कठिन एवं असाध्य रोग से मुक्ति के लिए-
‘ राम रसायन तुम्हरे पासा। सदा रहो रघुपति के दासा।।
लाय सजीवन लखन जियाये। श्रीरघुबीर हरषि उर लाये।।’
(7) भूत-प्रेत-भय से मुक्ति के लिए-
‘ भूत पिशाच निकट नहिं आवै।
महाबीर जब नाम सुनावै।।’
(8) कठिन कार्य करने के लिए-
‘ दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।’
(9) हनुमानजी एवं गुरु कृपा प्राप्त करने हेतु-
‘ जै जै जै हनुमान गोसाईं।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं।।’
अपनी आवश्यकतानुसार मंत्र चुनकर हनुमानजी का पूजन कर घी, तिल, जौ, गुग्गल, लोभान, पंचमेवा, मिश्री मिलाकर यथाशक्ति जप कर बाद में हवन में 108 आहुति डालें। मंत्र पढ़कर ‘स्वाहा’ का उच्चारण करें तथा बाद में नित्य एक माला जपें, कार्य निश्चित होगा। पश्चात बटुक भोजन करवाएं।
शांति प्राप्त करने हेतु एक सरल मंत्र है जिसके प्रयोग से शिव-हनुमान तथा रामचन्द्रजी की कृपा एकसाथ मिल जाती है।
‘ ॐ नम: शिवाय ॐ हं हनुमते श्री रामचन्द्राय नम:।’
हनुमान जयंती या हनुमान जन्मोत्सव
कई लोग भगवान हनुमान की जन्मतिथि के इस पर्व को हनुमान जयंती कहते है, जबकि ऐसा कहना उचित नहीं है। भगवान हनुमान की जन्मतिथि के दिन को जन्मोत्सव कहना चाहिए। साथ ही जयंती और जन्मोत्सव के फर्क को समझना चाहिए। दरअसल, जयंती शब्द का इस्तेमाल किसी ऐसे व्यक्ति के लिए इस्तेमाल किया जाता है, जो अब इस संसार में नहीं है।
वहीं भगवान हनुमान की जन्मतिथि को लेकर बात करें तो इसके लिए जन्मोत्सव शब्द का ही इस्तेमाल होना चाहिए क्योंकि कलियुग में केवल श्री राम भक्त हनुमान जी ही चिंरजीवी हैं। वे अजर-अमर हैं और आज भी विद्यमान हैं।
जन्मोत्सव कहने के लिए करें प्रेरित
जयंती और जन्मोत्सव शब्द के इस बड़े मूलभूत अंतर को देखते हुए भगवान हनुमान के जन्म के पर्व के लिए जन्मोत्सव शब्द का ही इस्तेमाल करें। साथ ही अन्य लोगों को भी सही शब्द कहने के लिए ही प्रेरित करें। इसके अलावा अपने शुभकामना संदेशों में भी हनुमान जन्मोत्सव का ही इस्तेमाल करें।
Jai jai shri ram🙏🏻❤️
श्री राम जय राम जय जय राम
Jai Shree ram
Jay Shree Ram 🙏🙏💐💐
जय श्री राम