श्री युगलकिशोर जी की आरती – आरती युगल किशोर की कीजै – Shri Yugal Kishor Ji Ki Aarti
आरती का अर्थ है पूरी श्रद्धा के साथ परमात्मा की भक्ति में डूब जाना। भगवान को प्रसन्न करना।
आरती को नीराजन भी कहा जाता है। नीराजन का अर्थ है विशेष रूप से प्रकाशित करना। यानी कि देव पूजन से प्राप्त होने वाली सकारात्मक शक्ति हमारे मन को प्रकाशित कर दें। व्यक्तित्व को उज्जवल कर दें। बिना मंत्र के किए गए पूजन में भी आरती कर लेने से पूर्णता आ जाती है। आरती पूरे घर को प्रकाशमान कर देती है, जिससे कई नकारात्मक शक्तियां घर से दूर हो जाती हैं। जीवन में सुख-समृद्धि के द्वार खुलते है|
श्री युगलकिशोर जी की आरती
आरती युगलकिशोर कि कीजै |
तन मन धन न्यौछावर कीजै |
रवि शशि कोटि बदन कि शोभा |
ताहि निरखि मेरी मन लोभा |
गौर श्याम मुख निखरत रीझै |
प्रभु को स्वरूप नयन भरि पीजै |
कंचन थार कपूर की बाती |
हरि आए निर्मल भई छाती |
फूलन की सेज फूलन की माला |
रतन सिंहासन बैठे नन्दलाला |
मोर मुकुट कर मुरली सोहे |
नटवर वेष देखि मन मोहे |
ओढ़यो नील-पीत पटसारी,
कुंज बिहारी गिरवरधारी |
आरती करत सकल ब्रजनारी |
नन्दनन्दन वृषभानु किशोरी |
परमानन्द स्वामी अविचल जोड़ी |
आरती युगल किशोर की कीजै |
युगलकिशोर जी परिचय
स्थान जहाँ से मूर्ति मिली : वृंदावन के किशोरवन से
स्थान जहाँ मूर्ति स्थापित है : पुराना युगलकिशोर मंदिर, पन्ना (म .प्र)
भगवान युगलकिशोर की यह मुर्ति हरिराम व्यास को वि. सं 1620 की माघ शुक्ल एकादशी को वृंदावन के किशोरवन नामक स्थान पर मिली। व्यास जी ने प्रतिमा को उसी स्थान पर प्रतिष्ठित किया। बाद मे ओरछा के राजा मधुकर शाह ने किशोरवन के पास मंदिर बनवाया। इस मंदिर में भगवान श्री युगलकिशोर जी अनेक वर्षो तक विराजे पर मुगलिया हमले के समय उनके भक्त उन्हें ओरछा के पास पन्ना ले गए। आज भी ठाकुर जी पन्ना के पुराने युगलकिशोर मंदिर मे दर्शन दे रहे है