Sri Ganesha Bhujangam – श्री गणेश भुजङ्गम् – रणत्क्षुद्रघण्टानिनादाभिरामं चलत्ताण्डवोद्दण्डवत्पद्मतालम्।

श्रीगणेशभुजङ्गस्तोत्रम् श्री शंकराचार्य जी द्वारा रचित एक अत्यंत दिव्य स्तोत्र है, जिसमें भगवान गणेश की महिमा का अद्भुत वर्णन किया गया है। इसमें कुल नौ श्लोक हैं, जिनमें गणेश जी के विभिन्न स्वरूपों और गुणों की स्तुति की गई है। यह स्तोत्र विशेष रूप से उन भक्तों के लिए है जो जीवन में सफलता, सुख, शांति और वाणी की सिद्धि प्राप्त करना चाहते हैं।

|| गणेश भुजङ्गम् ||

रणत्क्षुद्रघण्टानिनादाभिरामं
चलत्ताण्डवोद्दण्डवत्पद्मतालम् ।
लसत्तुन्दिलाङ्गोपरिव्यालहारं
गणाधीशमीशानसूनुं तमीडे ॥ 1 ॥

ध्वनिध्वंसवीणालयोल्लासिवक्त्रं
स्फुरच्छुण्डदण्डोल्लसद्बीजपूरम् ।
गलद्दर्पसौगन्ध्यलोलालिमालं
गणाधीशमीशानसूनुं तमीडे ॥ 2 ॥

प्रकाशज्जपारक्तरत्नप्रसून-
प्रवालप्रभातारुणज्योतिरेकम् ।
प्रलम्बोदरं वक्रतुण्डैकदन्तं
गणाधीशमीशानसूनुं तमीडे ॥ 3 ॥

विचित्रस्फुरद्रत्नमालाकिरीटं
किरीटोल्लसच्चन्द्ररेखाविभूषम् ।
विभूषैकभूषं भवध्वंसहेतुं
गणाधीशमीशानसूनुं तमीडे ॥ 4 ॥

उदञ्चद्भुजावल्लरीदृश्यमूलो-
च्चलद्भ्रूलताविभ्रमभ्राजदक्षम् ।
मरुत्सुन्दरीचामरैः सेव्यमानं
गणाधीशमीशानसूनुं तमीडे ॥ 5 ॥

स्फुरन्निष्ठुरालोलपिङ्गाक्षितारं
कृपाकोमलोदारलीलावतारम् ।
कलाबिन्दुगं गीयते योगिवर्यै-
र्गणाधीशमीशानसूनुं तमीडे ॥ 6 ॥

यमेकाक्षरं निर्मलं निर्विकल्पं
गुणातीतमानन्दमाकारशून्यम् ।
परं पारमोङ्कारमाम्नायगर्भं
वदन्ति प्रगल्भं पुराणं तमीडे ॥ 7 ॥

चिदानन्दसान्द्राय शान्ताय तुभ्यं
नमो विश्वकर्त्रे च हर्त्रे च तुभ्यम् ।
नमोऽनन्तलीलाय कैवल्यभासे
नमो विश्वबीज प्रसीदेशसूनो ॥ 8 ॥

इमं सुस्तवं प्रातरुत्थाय भक्त्या
पठेद्यस्तु मर्त्यो लभेत्सर्वकामान् ।
गणेशप्रसादेन सिद्ध्यन्ति वाचो
गणेशे विभौ दुर्लभं किं प्रसन्ने ॥ 9 ॥

श्रीगणेशभुजङ्गस्तोत्रम् का नियमित रूप से पाठ करना न केवल साधक की आध्यात्मिक उन्नति में सहायक होता है, बल्कि उसकी जीवन में हर प्रकार की बाधाओं को दूर कर उसे सफलता और समृद्धि की ओर अग्रसर करता है।

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