Kashi Vishwanath Ashtakam – श्री काशी विश्वनाथ अष्टकम – गंगा तरंग रमणीय जटा कलापं गौरी निरंतर विभूषित वाम भागं

यह एक पवित्र मंदिर है जो शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में गिना जाता है। इस मंदिर के मुख्य देवता श्री विश्वनाथ हैं, जिनका अर्थ है ब्रह्मांड के भगवान। कहा जाता है कि यदि भक्त एक बार इस मंदिर की यात्रा करता है और पवित्र गंगा में स्‍नान करता है, तो उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।

॥ श्रीकाशीविश्वनाथाष्टकम् ॥

गंगा तरंग रमणीय जटा कलापं
गौरी निरंतर विभूषित वाम भागं
नारायण प्रियमनंग मदापहारं
वाराणसी पुरपतिं भज विश्वनाथम् ॥ 1 ॥

वाचामगोचरमनेक गुण स्वरूपं
वागीश विष्णु सुर सेवित पाद पद्मं
वामेण विग्रह वरेन कलत्रवंतं
वाराणसी पुरपतिं भज विश्वनाथम् ॥ 2 ॥

भूतादिपं भुजग भूषण भूषितांगं
व्याघ्रांजिनां बरधरं, जटिलं, त्रिनेत्रं
पाशांकुशाभय वरप्रद शूलपाणिं
वाराणसी पुरपतिं भज विश्वनाथम् ॥ 3 ॥

सीतांशु शोभित किरीट विराजमानं
बालेक्षणातल विशोषित पंचबाणं
नागाधिपा रचित बासुर कर्ण पूरं
वाराणसी पुरपतिं भज विश्वनाथम् ॥ 4 ॥

पंचाननं दुरित मत्त मतंगजानां
नागांतकं धनुज पुंगव पन्नागानां
दावानलं मरण शोक जराटवीनां
वाराणसी पुरपतिं भज विश्वनाथम् ॥ 5 ॥

तेजोमयं सगुण निर्गुणमद्वितीयं
आनंद कंदमपराजित मप्रमेयं
नागात्मकं सकल निष्कलमात्म रूपं
वाराणसी पुरपतिं भज विश्वनाथम् ॥ 6 ॥

आशां विहाय परिहृत्य परश्य निंदां
पापे रथिं च सुनिवार्य मनस्समाधौ
आधाय हृत्-कमल मध्य गतं परेशं
वाराणसी पुरपतिं भज विश्वनाथम् ॥ 7 ॥

रागाधि दोष रहितं स्वजनानुरागं
वैराग्य शांति निलयं गिरिजा सहायं
माधुर्य धैर्य सुभगं गरलाभिरामं
वाराणसी पुरपतिं भज विश्वनाथम् ॥ 8 ॥

॥ फलश्रुति ॥

वाराणसी पुर पते स्थवनं शिवस्य
व्याख्यातं अष्टकमिदं पठते मनुष्य
विद्यां श्रियं विपुल सौख्यमनंत कीर्तिं
संप्राप्य देव निलये लभते च मोक्षम् ॥

विश्वनाथाष्टकमिदं पुण्यं यः पठेः शिव सन्निधौ
शिवलोकमवाप्नोति शिवेनसह मोदते ॥

॥ इति श्रीमहर्षिव्यासप्रणीतं श्रीविश्वनाथाष्टकं सम्पूर्णम् ॥

श्री विश्वनाथाष्टकम् स्तोत्र पाठ करते है उन्हें शिवलोक प्राप्त होता है। जो व्यक्ति सभी आशाओं को छोड़कर, पाप-कर्म से अनुराग हटाकर, काशीपति विश्वनाथ को समर्पित हो कर इस स्तोत्र का पाठ करता है, उसकी हर मनोकामना भगवान भोलेनाथ द्वारा पूरी की जाती है।

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