Shri Rudrashtakam – श्री रुद्राष्टकम् – नमामीशमीशान निर्वाणरूपं विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम् ।
“श्री शिव रूद्राष्टकम” का पाठ करके आप भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त कर सकते हैं? यह स्तुति एक शक्तिशाली मंत्र है, जिससे हम भगवान शिव से आशीर्वाद और सुरक्षा की प्रार्थना कर सकते हैं। यदि कोई शत्रु परेशान कर रहा है, तो किसी शिव मंदिर या घर में ही कुशा के आसन पर बैठकर लगातार 7 दिनों तक सुबह शाम ‘रूद्राष्टकम’ का पाठ करें, इससे शिव जी आपके शत्रुओं से सदैव आपकी रक्षा करेंगे। रामायण के अनुसार, भगवान श्रीराम ने भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने के लिए रामेश्वरम में ‘रूद्राष्टकम’ का पाठ किया था, और इससे उन्होंने रावण जैसे शत्रु का नाश किया।
॥ श्रीरुद्राष्टकम् ॥
नमामीशमीशान निर्वाणरूपं
विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम् ।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं
चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम् ॥ १॥
निराकारमोंकारमूलं तुरीयं
गिरा ज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम् ।
करालं महाकाल कालं कृपालं
गुणागार संसारपारं नतोऽहम् ॥ २॥
तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं
मनोभूत कोटिप्रभा श्री शरीरम् ।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गङ्गा
लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा ॥ ३॥
चलत्कुण्डलं भ्रू सुनेत्रं विशालं
प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् ।
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं
प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि ॥ ४॥
प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं
अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशम् ।
त्रयः शूल निर्मूलनं शूलपाणिं
भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यम् ॥ ५॥
कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी
सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी ।
चिदानन्द संदोह मोहापहारी
प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥ ६॥
न यावत् उमानाथ पादारविन्दं
भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् ।
न तावत् सुखं शान्ति सन्तापनाशं
प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासम् ॥ ७॥
न जानामि योगं जपं नैव पूजां
नतोऽहं सदा सर्वदा शम्भु तुभ्यम् ।
जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं
प्रभो पाहि आपन्नमामीश शम्भो ॥ ८॥
यह एक चमक्तारिक मंत्र है और इसे श्री गोस्वामी तुलसीदास जी ने रचा है, जो ‘राम चरित्र मानस’ के लेखक हैं। रामायण के अनुसार, भगवान श्रीराम ने रावण जैसे शत्रु पर विजय प्राप्त करने के लिए रामेशवरम में शिवलिंग की स्थापना की और ‘रूद्राष्टकम’ स्तुति का पाठ किया, जिससे शिव की कृपा से रावण का अंत हुआ।